भारत को मिल सकता है नया टेक बूम! टैक्स वॉर ने खोले मौके

वैश्विक शुल्क युद्ध से भारत को बड़ा लाभ मिलने की उम्मीद है। स्मार्टफोन और लैपटॉप/पर्सनल कंप्यूटर (पीसी) की वैश्विक कंपनियां अपने उत्पादन का पूरा या आंशिक हिस्सा भारत में स्थानांतरित करने पर विचार कर रही हैं। वैश्विक कंपनियों से बातचीत के आधार पर काउंटरप्वाइंट रिसर्च के अनुमान के मुताबिक 2024 में चीन का स्मार्टफोन विनिर्माण कुल वैश्विक उत्पादन का 64 प्रतिशत था और अगर शुल्क लगाया जाना और तनाव जारी रहता है तो 2026 तक वैश्विक स्मार्ट फोन विनिर्माण में चीन की हिस्सेदारी तेजी से घटकर 55 प्रतिशत पर आ सकती है।
इस अवधि के दौरान भारत बड़ा लाभार्थी बन सकता है और इसकी वैश्विक स्मार्टफोन उत्पादन में हिस्सेदारी 2024 के 18 प्रतिशत से बढ़कर 2026 तक 25 से 28 प्रतिशत तक हो सकती है। ऐपल इंक और सैमसंग द्वारा भारत से निर्यात बढ़ाने, खासकर अमेरिका को निर्यात बढ़ाने के कारण ऐसा होने की संभावना है। ऐपल आईफोन का निर्यात पहले से ही वैश्विक उत्पादन मूल्य का 20 प्रतिशत है। यह 2025-26 तक बढ़कर 25 प्रतिशत और 2026-27 तक 35 प्रतिशत तक पहुंचने की उम्मीद है।
लैपटॉप और पीसी का कारोबार इस पर निर्भर करेगा कि भारत वैश्विक ब्रॉन्डों को कैसे आकर्षित कर सकता है। अमेरिका इस समय 21 अरब डॉलर का आयात करता है, जिसमें से 79 प्रतिशत से अधिक माल चीन से आता है। इस श्रेणी में भी चीन की हिस्सेदारी घटने की संभावना है। काउंटरप्वाइंट का कहना है कि 2024 में वैश्विक लैपटॉप विनिर्माण में चीन की हिस्सेदारी 75 प्रतिशत रही है, जो 2026 तक गिरकर 68 से 70 प्रतिशत पर आ सकती है।
इंडियन सेलुलर ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन के एक सदस्य का कहना है, ‘वैश्विक लैपटॉप वैल्यू चेन में हमारी हिस्सेदारी इस समय 1 प्रतिशत से भी कम है, जिसका सालाना कारोबार 200 अरब डॉलर है। हम ज्यादातर लैपटॉप और पीसी का आयात करते हैं और इसमें से ज्यादातर चीन से आता है। लेकिन अगर ह्यूलिट पैर्क्ड पैकर्ड (एचपी), डेल और अन्य कंपनियां अपने उत्पादन का कुछ हिस्सा चीन से भारत में स्थानांतरित कर दें, तो हम मोबाइल के क्षेत्र की सफलता की कहानी दोहरा सकते हैं।’
इस तरह के कदमों को सूचना तकनीक उत्पादों के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना के माध्यम से पहले से ही समर्थन दिया जा रहा है, जिसे भविष्य में प्रोत्साहनों से और बल मिलने की संभावना है। काउंटरप्वाइंट के अनुमानों के मुताबिक मात्रा के हिसाब से लैपटॉप उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी बढ़कर 2026 तक 7 प्रतिशत हो सकती है, जो 2024 में 4 प्रतिशत से कम थी। अगर वैश्विक कंपनियां अपना उत्पादन चीन से भारत में शिफ्ट करती हैं तो और भी ज्यादा नाटकीय बदलाव हो सकता है। यह बदलाव न सिर्फ घरेलू बाजार में होगा, बल्कि निर्यात पर भी असर होगा।
अगर हम कैनालिस की ताजा रिपोर्ट देखें तो यह आसान नजर नहीं आता। 2024 में डेल का 79 प्रतिशत उत्पादन चीन में हुआ, जबकि शेष उत्पादन वियतनाम में हुआ है। कैनालिस प्रोजेक्ट्स में कहा गया है कि 2026 तक डेल की आधे से ज्यादा उत्पादन क्षमता वियतनाम चली जाएगी। एचपी की स्थिति देखें तो कंपनी 85 प्रतिशत उत्पादन चीन में करती है, जबकि शेष उत्पादन ताइवान और मेक्सिको में करती है। 2026 तक ताइवान और मेक्सिको की हिस्सेदारी बढ़कर 45 से 50 प्रतिशत के बीच हो सकती है।
लेनोवो ने 2024 में अपने 99 प्रतिशत लैपटॉप चीन में बनाए, जो वियतनाम में अपनी मौजूदगी बढ़ा रही है। अमेरिका के लैपटॉप बाजार में ताइवान की दो कंपनियों आसुस और एसर की 23 प्रतिशत हिस्सेदारी है और इन कंपनियों ने अलग योजना बनाई है, जिसमें भारत की प्रमुख भूमिका है। वर्ष 2024 में आसुस और एसर का क्रमशः 98 प्रतिशत और 94 प्रतिशत उत्पादन चीन में हुआ, जबकि शेष उत्पादन भारत में हुआ है। साल 2026 तक आसुस के उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी बढ़कर 4 प्रतिशत और एसर की 8 से 10 प्रतिशत होने की उम्मीद है।